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Hemchand Yadav Vishwavidyalaya Kul Geet



EXAM QUESTION PAPER(2021-22)

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देसी केंचुआ गोबर नहीं खाता। न ताजा न सूखा हुआ। इसलिए छत्तीसगढ़ के गोठानों में गोबर खाद बनाने के लिए ऑस्ट्रेलियाई केंचुओं का इस्तेमाल किया जाता है। ताजा गोबर में ये भी मर जाते हैं इसलिए इन्हें बासी गोबर में डाला जाता है। यह जानकारी एमजे कालेज के वाणिज्य एवं प्रबंधन के विद्यार्थियों को शहरी गोठान में मिली।

Students visit Shahari Gothaan


महाविद्यालय की निदेशक डॉ श्रीलेखा विरुलकर एवं प्राचार्य डॉ अनिल कुमार चौबे के निर्देशन में इस शैक्षणिक भ्रमण का आयोजन किया गया था। ये विद्यार्थी एनएसएस कार्यक्रम अधिकारी डॉ जेपी कन्नौजे एवं विभाग के सहा. प्राध्यापक दीपक रंजन दास के नेतृत्व में भिलाई नगर रेलवे स्टेशन के समीप बने शहरी गोठान पहुंचे थे।
गोठान में श्री जंघेल ने उन्हें बताया कि गोबर खाद बनाने के लिए ऑस्ट्रेलियाई केंचुआ “आइसेनिया फटीडा” का उपयोग किया जाता है। देसी केंचुआ गोबर को पसंद नहीं करता। ताजा गोबर से मीथेन गैस निकलती है जिससे केंचुएं मर जाते हैं। इसलिए गोबर को संग्रहण के बाद 10-12 दिन के लिए छोड़ दिया जाता है। जब पूरी गैस निकल जाती है तब उसे खाद की टंकियों में डाला जाता है। फिर उसमें केंचुए डाल दिये जाते हैं।
श्री जंघेल ने बताया कि केंचुआ दुनिया का एकमात्र प्राणी है जो 24×7 काम करता है। वह लगातार खाता है और मिट्टी के छोटे छोटे गोले निकालता है। इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाती है। इससे पानी सतह पर ठहरता या जमता नहीं बल्कि सीधे नीचे जाकर मिट्टी को नमी प्रदान करता है। इनके द्वारा तैयार किया गया खाद 5-15 रुपए प्रति किलो तक बिकता है। केंचुए 60 दिन में अपनी संख्या चार गुना कर लेते हैं। इसलिए इनकी भी बिक्री की जा सकती है। “आइसेनिया फटीडा” 300 रुपए प्रति किलो तक बिकता है।
उन्होंने बताया कि वर्मी कम्पोस्ट के लिए रेडीमेड प्लास्टिक की टंकियां आती हैं जिन्हें कहीं भी रखा जा सकता है। सीमेंट कंक्रीट से भी टंकियां बनाई जा सकती हैं। इनमें केवल डेढ़ फीट तक ही गोबर-मिट्टी डाला जाता है। इससे अधिक गोबर-मिट्टी होने पर केंचुएं मर जाते हैं। उन्होंने बताया कि वर्मी कम्पोस्ट टंकियों के नीचे ड्रेन की व्यवस्था की जाती है। यहां से केंचुए का पसीना और मूत्र बाहर आ जाता है। यह भी खाद का काम करता है। इस द्रव को 1:10 के अनुपात में पानी में मिलाया जाता है और फिर इसका छिड़काव किया जाता है।
डॉ जेपी कन्नौजे ने विद्यार्थियों को बताया कि गोबर कम्पोस्ट का खाद आर्गेनिक खेती के काम आता है। आर्गेनिक अनाज, फल और सब्जियों की इन दिनों अच्छी मांग है। इनकी अच्छी कीमत भी मिलती है। गोठान बनाने के छत्तीसगढ़ शासन के फैसले से किसानों को तो लाभ होगा ही आर्गेनिक अनाज, फल और सब्जियों से जनता की सेहत में भी सुधार होगा।
वाणिज्य एवं प्रबंधन विभाग के सहा. प्राध्यापक दीपक रंजन दास ने बताया कि अच्छी सेहत का स्वास्थ्य सेवाओं पर होने वाले खर्च से सीधा संबंध है। यदि लोगों का सामान्य स्वास्थ्य अच्छा रहेगा, वे कम बीमार पड़ेंगे, उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी रहेगी। भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में इससे स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव कम होगा। व्यवस्था सुधरेगी और बचत भी होगी। इसलिए वर्मी कम्पोस्ट खादों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। छत्तीसगढ़ शासन ने गोठान खोलकर इस दिशा में अच्छी पहल की है।
विद्यार्थियों ने गोठान में गाय और बछड़ों के साथ भी कुछ वक्त बिताया और उनके साथ फोटो भी खिंचवाई। गोठान का अवलोकन कर विद्यार्थी बेहद खुश थे। इस शैक्षणिक भ्रमण में प्राची वर्मा, काजल पाल, ज्योति चंदेल, अर्पिता सिंह, शाजिया खान, सुरेखा साहू, नंदिनी, तनु महतो, आर्यन यादव, सिद्धार्थ कुमार, देवधर गौतम, यशवंत, गीतेश श्रीवास्तव, सौम्या, आदि विद्यार्थी शामिल थे।