भिलाई। बच्चों का बढ़ता स्क्रीन टाइम माता-पिता के साथ ही पूरी दुनिया के लिए एक गंभीर चुनौती बन गया है। इसके कारण अमेरिकी बच्चों में मायोपिया (निकट दृष्टिदोष) खतरनाक स्तर तक पहुंच चुका है। कोविड पैंडेमिक के दौर में भारतीय बच्चों का स्क्रीन टाइम भी 3-5 घंटे तक बढ़ गया है। आखिर क्यों खतरनाक है स्क्रीन टाइम का बढ़ना और किस तरह इसके दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है। बता रही हैं रेटिना विशेषज्ञ डॉ छाया भारती एवं बाल विकास विशेषज्ञ डॉ रजनी राय।
हाइटेक सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल की रेटिना विशेषज्ञ डॉ छाया भारती बताती हैं कि डिजिटल स्क्रीन से अधिकतम नीला प्रकाश उत्सर्जित होता है। जबकि सूर्य की रोशनी में स्पेक्ट्रम के सभी रंग विद्यमान होते हैं। नीले प्रकाश का तरंग दैर्घ्य (वेव लेंथ) कम होता है। साथ ही इनमें ऊर्जा का स्तर बहुत अधिक होता है। बच्चे बिना पलक झपकाए बहुत पास से एकटक स्क्रीन को देखते हैं। मूल समस्या यही है। सूर्य की रौशनी में बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी और लाल रंग के किरणें होती हैं। इन सभी का तरंग दैर्घ्य अलग अलग होता है। लाल रंग का तरंग दैर्घ्य सबसे अधिक होता है तथा इसमें ऊर्जा सबसे कम होती है। जब हम घर से बाहर होते हैं तो सूर्य की रौशनी में ही वस्तुओं को देखते हैं। इससे आंखों पर जोर नहीं पड़ता। इसके अलावा हर वस्तु हमारी आंखों से अलग अलग दूरी पर होती है जिसके कारण आंखें तनाव और थकान से बची रहती हैं।
डॉ छाया बताती हैं कि नीली रौशनी आपकी आंखों में स्थित फोटो रिसेप्टर्स में टॉक्सिक मॉलीक्यूल का सृजन करते हैं। यह जहर फोटो रिसेप्टर सेल्स को मार देती हैं। इसके कारण एएमडी जैसी बीमारियां हो सकती हैं। लंबे समय में यह आपको दृष्टि शून्य कर सकती हैं। बड़ों की तुलना में यह बच्चों के लिए यह स्थिति ज्यादा खतरनाक होती है।
एमजे कालेज की सहायक प्राध्यापक डॉ रजनी राय बताती हैं कि टीवी, स्मार्ट फोन, टैबलेट और अन्य गेमिंग डिवाइस पर बिताए जाने वाले समय को स्क्रीन टाइम कहते हैं। अमेरिकी बच्चों में मायोपिया के मामले खतरनाक गति से बढ़ रहे हैं। बढ़े हुए स्क्रीन टाइम के कारण अब भारतीय बच्चे भी खतरे में हैं। कोविड महामारी के कारण ऑनलाइन टीचिंग लर्निंग को अपनाना पड़ा है। ऊपर से बच्चों का बाहर जाना लगभग बंद हो चुका है। इससे आउटडोर एक्टिविटी के बजाय स्क्रीन टाइम बढ़ गया है। बच्चों का विकास डॉ रजनी के शोध का विषय है।
डॉ रजनी ने बताया कि पहले जिन बच्चों के हाथ से हम मोबाइल फोन छीन लिया करते थे, अब उन्हें जबरदस्ती स्मार्ट फोन पकड़ा कर घंटों टेबल पर बैठा रहे हैं। यह पद्धति अब जीवन का हिस्सा बन चुकी है जिससे निकट भविष्य में निजात पाने का कोई लक्षण फिलहाल दिखाई नहीं देता। इसलिए हमें इसके साथ जीना सीखना होगा।
डॉ रजनी ने इसके लिए कुछ उपाय भी बताए –
1. बताया कि स्मार्ट डिवाइस पर पढ़ाई करने वाले बच्चों को प्रत्येक 20 मिनट में ब्रेक लेने के लिए कहें। इस दौरान वे खिड़की के पास या बाल्कनी में जाकर खड़े हों। यह ब्रेक कम से कम 15-20 मिनट का हो।
2. बच्चों को बाहर अधिक समय बिताने के लिए रचनात्मक तरीके आजमाएं और बाहरी समय को प्रोत्साहित करने के लिए मजेदार गतिविधियों को शामिल करें।
3. स्क्रीन टाइम नींद में भी खलल डालती हैं। इससे बचने के लिए अपने आईफोन या एंड्रायड डिवाइस पर नाइट मोड चालू करें।
4. आंखों की नियमित जांच किसी रेटिना विशेषज्ञ से कराएं।