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Hemchand Yadav Vishwavidyalaya Kul Geet



EXAM QUESTION PAPER(2021-22)

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पानी को मुफ्त की सहूलियत मानकर हमने उसका भरपूर दुरुपयोग किया है। पर बढ़ती आबादी के साथ पानी का मोल भी हमें समझना होगा। याद रखें कि पानी के लिए राज्यों के बीच झगड़े होते हैं तथा कभी भी वह दिन आ सकता है जब पानी के लिए विश्व युद्ध हो जाए। पानी बचाने के लिए लगातार नई तकनीकें आ रही हैं पर हमें व्यक्तिगत स्तर पर भी जागरूक होकर पानी की बर्बादी रोकनी होगी। उक्त जानकारी एक्रेडिटेड एनर्जी ऑडिटर मूलचंद जैन ने एमजे कालेज में आयोजित जलसंरक्षण वेबीनार में दीं।मुख्य वक्ता की आसंदी से संबोधित करते हुए उन्होंने बताया कि भारत में 90 फीसदी पानी का उपयोग कृषि के लिए किया जाता है। 7 फीसद पानी औद्योगिक उपयोग में आता है जबकि केवल 3 फीसद पानी व्यक्तिगत या घरेलू उपयोग पर खर्च होता है। कृषि में नई तकनीकों का उपयोग कर हम पानी की खपत को कम कर सकते हैं। औद्योगिक उपयोग में आए पानी को संशोधित कर ही पर्यावरण में छोड़ा जाना चाहिए। इससे भूजल का प्रदूषण रोका जा सकता है।
घरेलू उपयोग पर ध्यान केन्द्रित करते हुए उन्होंने पानी का उपयोग करने के विभिन्न उपायों की चर्चा की। उन्होंने कहा कि शावर, फ्लश का युक्तियुक्त उपयोग करने के साथ ही लीकेज रोककर तथा पानी के नलके के समुचित उपयोग करके हम सैकड़ों गैलन पानी प्रतिमाह बचा सकते हैं। पानी की खपत को मीटर करना चाहिए तथा उसके अनुसार लोगों से पैसा लिया जाना चाहिए। इससे लोगों को पता लगेगा कि वे कितना पैसा बर्बाद कर रहे हैं।
बीएसपी क्वार्टरों में आने वाली पाइप लाइप पानी की गुणवत्ता की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि वहां एलम का गलत मात्रा में प्रयोग हो रहा था। यहां दिक्कत जानकारी के अभाव की नहीं है बल्कि संवेदनशील नहीं होने की है। हमें यह देखना है कि हम अपने अपने स्तर पर कितना पानी बचा सकते हैं। ऐसा करने पर देश का भला हो जाएगा।
रूफटॉप रेन वाटर हार्वेस्टिंग के उपायों की विस्तार से चर्चा करते हुए श्री जैन ने कहा कि इस पानी को सीधे ग्राउंड वाटर टेबल तक पहुंचाने का स्ट्रक्चर बनाया जाए तथा किसी भी कीमत पर उसे नाली में न बहने दिया जाए। गांव-गांव इस तरह के उपाय किये जाते थे जिसे पुनर्जीवित करने की जरूरत है।
प्रतिभागियों द्वारा पूछे गए प्रश्नों का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि भारत में न्यूक्लियर रिएक्टर बहुत कम हैं। वहां उपयोग में आने वाले पानी को वहीं खत्म कर दिया जाता है क्योंकि उसका शोधन नहीं हो सकता। कपास और गन्ने की खेती में लगने वाले पानी पर उन्होंने कहा कि यह पानी वैसे भी वापस भूमि में चला जाता है। हालांकि आधुनिक सिंचाई तकनीकों का उपयोग कर इसे कम किया जा सकता है।
महाविद्यालय की निदेशक डॉ श्रीलेखा विरुलकर की प्रेरणा से आयोजित इस वेबीनार का संचालन वाणिज्य एवं प्रबंधन विभाग के प्रभारी विकास सेजपाल ने किया। प्राचार्य डॉ अनिल कुमार चौबे ने मॉडरेटर की जिम्मेदारी निभाई। वेबीनार में 250 से अधिक अभ्यर्थियों ने पंजीयन किया जिन्हें ऑनलाइन सर्टिफिकेट प्रदान किये गये। कार्यक्रम को सफल बनाने में आईक्यूएसी की महति भूमिका रही। धन्यवाद ज्ञापन शिक्षा संकाय की प्रभारी डॉ श्वेता भाटिया ने किया।