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संत कबीरदास जी के 15वीं शताब्दी के दोहे मानव जीवन को सूत्र देते हैं। गहन अध्ययन से निकले ये दोहे आज भी न केवल प्रासंगिक हैं बल्कि तनावमुक्त जीवन की राह बताते हैं। उन्होंने अहंकार, असत्य और अहिंसा से दूर रहने की सलाह दी थी जो तब से आज तक सभी संकटों के मूल में पाए जाते हैं।उक्त उद्गार फार्मेसी कालेज के प्राचार्य डॉ टिकेश्वर कुमार ने कबीर जयंती के उपलक्ष्य में एमजे कालेज के हिन्दी विभाग द्वारा आंतरिक गुणवत्ता मूल्यांकन प्रकोष्ठ (आईक्यूएसी) के सहयोग से आयोजित कार्यक्रम में व्यक्त किये। कार्यक्रम में 100 से अधिक विद्यार्थी ऑनलाइन जुड़े थे। डॉ टिकेश्वर ने कबीर को दोहराते हुए कहा कि “जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान”। आज इंसान जो समता का सफर तय कर रहा है, वह इन्हीं मूल्यों पर आधारित है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए एमजे कालेज के प्राचार्य डॉ अनिल कुमार चौबे ने कहा कि जाति-पाति-पंथ में बंटा समाज उन्हें विचलित करता था। इसलिए वे चाहते थे कि मनुष्य अपने स्वरूप को समझे और उसके अनुरूप ही आचरण करे। उन्होंने ईश्वर और आत्मा के मिलन में शरीर को बाधा बताते हुए कहा था कि शरीर के अहंकार का त्याग कर हम सहज ही ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं।
हिन्दी विभाग की सहायक प्राध्यापक शकुन्तला जलकारे ने कबीर के दोहों को उद्धृत करते हुए कहा कि आज के क्लिष्ट जीवन की उलझनों को सुलझाने में भी ये सहायक सिद्ध होते हैं। उनके दिखाए रास्ते पर चलकर हम श्रेष्ठ मनुष्य बन सकते हैं।

शिक्षा विभाग की सहायक प्राध्यापक ममता एस राहुल ने कबीर के दोहों की सुमधुर प्रस्तुति देकर खूब तालियां बटोरीं। इस अवसर पर शिक्षा विभाग की प्रभारी डॉ श्वेता भाटिया भी मंचासीन थीं। सहा. प्राध्यापक गण नेहा महाजन, उर्मिला यादव सहित सभी प्राध्यापकगण मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन आईक्यूएसी की प्रभारी अर्चना त्रिपाठी ने किया।